Nature (प्रकृति)

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Jan 7, 2021
'आयुर्वेद' नाम का अर्थ है, 'जीवन से सम्बन्धित ज्ञान' जो पध्दति मनुष्य को स्वस्थ रहने के बारे में बताये वही आयुर्वेदिक है।

प्रकृति परिक्षण: निरोग ज़िन्दगी जीने के लिए आपको अपनी प्रकृति के बारे में जरूर पता होना चाहिए।

आयुर्वेदिक इलाज करने में प्रकृति का अहम रोल है यू कहे कि बिना प्रकृति ज्ञान के डॉक्टर सही आयुर्वेद इलाज कर ही नहीं सकता।
जब हम पैदा होते है हमारे शरीर की प्रकृति उसी समय बन जाती है।
1. वात
2. पित्त
3. कफ
4. वात पित्त
5. पित्त कफ
6. वात कफ
7. वात पित्त कफ

उदाहरण के तौर पर यदि हम देखे तो :-

यदि आपको प्रकृति 'वात ' है तो आपके डॉक्टर को पता होना चाहिए कि आपको ठंडी और वाय वाली चीजों से दूर रहना चाहिए। यदि पित्त है तो आपको गर्म व मसाले वाली चीजों से दूर रहना चाहिए। यदि कफ हो तो चिकनाई तली हुई चीजों से दूर रहना चाहिए।

इसीलिए आयुर्वेदिक इलाज करने से पहले डॉक्टर को प्रकृति परिक्षण कर लेना चाहिए। इसी प्रकृति के कारण ही आयुर्वेद खान पान, रहन-सहन,परहेज पर अधिक जोर दिया जाता है। चुकी आजतक अधितर बीमारियाँ गलत खान-पान व रहन सहन , परहेज के कारण ही हो रही है। अगर आप असली प्रकृति के हिसाब से खान-पान व रहन सहन रखेंगे तो आप ज्यादा समय तक बिना दवाई के स्वस्थ रहेंगे। मुझे यह कहने में थोड़ी भी शका नहीं होगी कि आप अपना,अपने परिवार का अपने दोस्तों को, अपने सभी जानकारों को प्रकृति परिसर करने कि सलाह दे ताकि वो सभी लोग बिना दवाई के स्वस्थ रह सके।

प्रकृति परिक्षण कैसे करे :-

सही प्रकृति जानने के लिए सुबह खाली पेट अपने आयुर्वेदिक डॉक्टर (जिसे नाड़ी ज्ञान हो ) उसके पास जाए उनके दवारा दिया गया फार्म पर अपना जवाब लिए और साथ ही नाड़ी दिखाए। फार्म पर दिए गए प्रश्नो के उत्तर और नाड़ी परीक्षा दोनों का जो नतिजा निकलता है वही आपकी प्रकृति होता है।

वात से - ८० प्रकार के रोग होते है :
पित्त से - ४८ प्रकार
कफ से - २० प्रकार
तीनो का -१४८ प्रकार के रोग हो सकते है इसीलिए वात पित्त कफ का बैलेंस होना ही स्वस्थ शरीर कहलाता है।

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